त्रिपुरा के जय श्री राम
मुझे त्रिपुरा आये हुए कुछ 7 महीने हो गए है। पहले तो ट्रेनिंग ही चल रहा था , तो उसके लिए एक महीना और फिर जब अंतिम स्थान चुनने की बारी आई तो मैंने त्रिपुरा ही चुना। कारण इसका साफ़ और सीधा था- मुझे त्रिपुरा के बारे में कुछ था जो जानना और समझना था और ख़ास तौर पर पूरे स्टेट में बढ़ती हुई जय श्री राम की गूँज के बारे में! ये गूँज मुझे वापिस यही खींच लाई।
मैं बेलोनिया नाम के एक छोटे से शहर में रहता हूँ जो एक तरफ से भारत का अंतिम छोर है और एक तरफ से एकदम पहला। गर्दन घुमायी नहीं की बांग्लादेश दिख जाता है। हर शाम को बॉर्डर के उधर से आज़ान की आवाज आती है जिसे सुनकर कानों को थोड़ा सुकून मिलता है। बॉर्डर के उस तरफ नजदीक में ही एक मस्जिद है, शायद वहीँ से आती भी होगी। लेकिन बॉर्डर के इस तरफ, माने अपने भारत में, अपने बेलोनिया में, ठीक इस आज़ान के कुछ समय बाद एक ही सुर में एक ही नारो की आवाज़ें आती है और जोर जोर से जय श्री राम उन नारो में सुनने को मिलता है। कभी कभी तो यही जय श्री राम 'मंदिर वही बनायेगे' वाला रूप भी ले लेता है। लोगो में ऐसा जोश और जुनून कुछ नारो के लिए मैंने तो कही और सुना और देखा नहीं है। शायद ही कोई दिन होगा जिस दिन ये आवाज़ें नहीं सुनाई देती हो।
खैर, मुझे इन आवाज़ों से कोई दिक्कत तो नहीं है लेकिन ये समझ में भी नहीं आता की इन नारो की हर दिन हर शाम इन्हें क्यों लगाने की जरुरत मह्शूश होती है? ऐसा भी नहीं है कि बिना इतने ज़ोर से चिल्लाये इनके राम खुश नहीं होंगे? 7-8 बजे के समय के आसपास ठण्ड में लोग सोने चले जाते है लेकिन इनका जूनून इन्हें अपने सुकून के कमरे से कैसे बाहर ले आता है? और फिर जो मंदिर वहीँ बनायेगे वाले नारे, उनसे ये लोग क्या कहना चाहते है? ऐसा भी नहीं है कि अयोध्या यही कहीं बेलोनिया के पास है? बेलोनिया कि आधी से ज्यादा आबादी तो कभी त्रिपुरा से बाहर भी नहीं निकल पाती अपने पूरे जीवन काल में फिर उनके लिए अयोध्या चिल्लाना भी थोड़ा अटपटा लगता है।
त्रिपुरा एक ऐसा राज्य है जहाँ पर पिछले 25 साल तक एक ऐसी सरकार रही है जिनका धर्म और धर्म के भगवानो से कोई लेना देना नहीं होता है। इन्ही लोगों ने ही वो सरकार 25 साल तक बिना रुके चलने भी दी। लेकिन फिर अचानक इन्ही लोगो को ऐसा क्या हो गया की वो हर शाम अपना आराम सुकून छोड़कर जय श्री राम चिल्लाते हुए पाये जाते है। लगभग 50 लोगो की तादाद में हर दिन ऐसा करना जरूर उनका जुनून ही दिखाता है।
अभी हाल ही में यहाँ पे म्युनिसिपल चुनाव हुए है और पूरे स्टेट की तरह बीजेपी हर सीट पाने में कामयाब रही है। जिस दिन ये रिजल्ट आया था, उस शाम का तो पूछो ही मत आप- जय श्री राम के नारे तो लग ही रहे थे, घर घर मोदी के भी लगने चालू हो गए और वो भी पूरे डीजे के साथ।
ये बदलाव तो यहाँ पे देखा है- चीखने और चिल्लाने वाला। जो मर्जी हो रहा हो, डीजे तो बजेगा। शादी बारात पे तो हर कहीं बजट ही है, कपडे बेचते हुए कौन डीजे बजाता है? अपने बेलोनिया में लोग ये काम भी कर देते है। और उस डीजे में जय श्री राम सुन जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि हर नुक्कड़ गली में तो वही ही चल रहा है- कभी नारो में तो कभी डीजे की आवाज़ों में।
एक बॉर्डर वाली छोटी सी जगह पे ऐसा कुछ होना, थोड़ा ताजुब की बात लगती है। यही बेलोनिया सीपीआई (म) का गढ़ रहा है, आज भी है। बस ये डीजे और नारे पहले नहीं थे।
ये सारा बदलाव तो किसी और चीज का संकेत दे रहा है। देखते है क्या होता है।